कोई बिरलाहि जाने निरंजनको

(तर्ज : मेरी सुरत गगन में जाय रही .... )
कोई बिरलाहि जाने निरंजनको ।
निरंजनको, भव -भंजनको ।।टेक।।
बेद थके, नहि खोज मिली है, ग्रंथ रूके मुनि -भंजनको ।।१।।
शेष थके, जिन्ह फाड दिन्हो है, भूल पडी संतन-मनको ।।२।।
पीर थके पैगम्बर भूले, भूल   पडी     सबही     जनको ।।३।।
सिध्द साधक धर मौन बसे है, तुकड्या कहे न पाया उनको ।।४।।