क्या ये किस्मत हमारे, भटकते चले है

(तर्ज : दिखा दो नजर से यह जलवा तुम्हारा...)
क्या ये किस्मत हमारे, भटकते चले है ।
जुदाई के परदे खटकते चले है ।।टेक।।
न पुजाभी होती, कभी एकदिलसे ।
हमारे भरम मन, लटकते चले है ।।१।।
कभी संत-संगत न कीन्ही जरासी ।
बस खाना और सोना, चटकते चले है ।।२।।
पुराणों की बातें, पुराणों में खोई ।
सदा दिल विषय में, भटकते चले है ।।३।।
कभी दूर होगा, यह परदा हमारा ? ।
वे बिरलेहि बंदे, सटकते चले है ।।४।।
कहे दास तुकड्या, प्रभू का सहारा ।
भजन-प्रेममें दिल अटकते चले है ।।५।।