आशिक तो माशुकमें बैठे
(छंद)
आशिक तो माशुकमें बैठे, क्या मुखसे कहने आये ? ।
कहनेवाले अलग खडे है, रहनेकी गत ना पाये ?।।टेक।।
क्या जो चूर हुए सेवामें, सो सेवा कहिं बतलाये ? ।
क्या जो डुब मरे गंगामे, कहते है ऐसे न्हाये ? ।।१।।
लगे हुए प्रीतमसे अपने, क्या कहते प्रीतम पाये ? ।
समा गये जो ध्याननके सँग, क्या कहते ध्यानी पाये ? ।।२।।
क्या जो शूर मरे धरणीपे, कहते रण जीते आये ? ।
क्या रोनेवालेही किनसे, अपना रोना बतलाये ? ।।३।।
कहनेसे रहना कुछ न्यारा, मजा रहमकी ना छाये ।
क्या जाने वह किस हालतमें, अपने आतमको ध्याये ? ।।४।।
ये तो सब कहने की बातें, नहिं मालुम दुख क्या पाये ।
अनुभवकी गत अनुभवि जाने,क्या दूजा मुख फरमावे ?।।५।।
ये तो सब प्रीती लगनेको, आशिकके घर बतलाये ।
तुकड्यादास कहे सतसंगत, जो पाये सो अजमाये ।।६।।