ऊठ चल खोल जरा नैना, भुलाती नींदन में मैना

(तर्ज : जमका अजब तडाका बे... )
ऊठ चल खोल जरा नैना, भुलाती नींदन में मैना ।। टेक ।।

लख चौऱ्याशी घटके भीतर, खूब पडा था सोया ।
अंतकाल में चोर पुकारे, निजकी गठडी खोया ।। १ ।।

अजब करामत उसमें भाई, सबको नींद चढायी ।
अंतःकाल में होवत जागा, जमकी मार बढायी ।। २ ।।

पुरब जनमकी पूरी कमाई, करके नरतन पाई।
नींदन में अब खोय रहा है, नर्क-निशानी भाई 
।। ३ ।।

मार जुताड़ें नींदनको अब, जान स्वरुप तू अपना।
कहता तुकड्या क्यों भूला है, झूठ समय यह सपना ।। ४ ।।