करो मन ! गंगाके तीर निवासा

(तर्ज : जय जय विठ्ठल बोला... )
करो मन ! गंगाके तीर निवासा । करो मन०।।टेक।।
गंगा स्वर्गलोकसे आयी, सिरपर शंकरने धरपाई ।
अमृत भक्तनको पिलवाई, मिटा दी प्यासा, मिटा दी प्यासा ।।१।।
जो कोई गंगा-स्नान करावे, उसको जमराजा नहि छीवे ।
पूरी अमरनाथ को पावे, पड़े परकासा, पड़े परकासा ।।२।।
जो नर गंगा-तीर बिराजे, उसकी जगमें नौबत बाजे ।
आते शरण राजे-महाराजे, लगाकर आसा, लगाकर आसा ।।३।।
गंगा-तीर मनोहर छाया, उजले नित तपियनकी काया ।
भागे दुर्गुण मनकी माया, मिले गुण खासा, मिलें गुण खासा ।।४।।
तुकड्यादास कहे मैं देखा, गंगातीरका प्रेम अनोखा ।
जो नर सच्चा तिरना सीखा, बने अविनासा, बने अविनासा ।।५।।