उन गोपी सँगमें नाच नचे गिरिधारी

(तर्ज : मोहनकी बंसी, बाज रही...)
उन गोपी सँगमें नाच नचे गिरिधारी ।।टेक।।
भाग बड़े वा जनके ऊँचे, जाऊँ सदा मैं वारी ।।१।।
कहिं कुंजनमें बंसि बजाकर, मोहे चढ़ाकर तारी ।।२।।
कहि गोओंको भूल गिरावे, खानापान बिसारी ।।३।।
तुकड्यादास कहे वा दिनकी, आति है याद पियारी ।।४।।