काहे जपें हरि ! नाम, तुम्हारो ?

(तर्ज: चलत चलत मथुरा नगरिमों .... )
काहे जपें हरि ! नाम, तुम्हारो ?।।टेक।।
तुमने किसका किया भला है ? यह बतलाओ श्याम ! तुम्हारो०।।१।।
हरिश्चंद्रने किया भरोसा, किया डोम-घर काम । तुम्हारो०।।२।।
पांडवने तुम्हरे गुण गाये, भीखको लगे तमाम । तुम्हारो०।।३।।
धृव बालक तुमहीसे लागा, छोड दिया सब धाम । तुम्हारो०।।४।।
कई तो राव रंके कर डारे, कर कर सब बदनाम । तुम्हारो०।।५।।
तुकड्यादास कहे हम बिगरे, रहे नहि तनके काम । तुम्हारो०।।६।।