क्यों मोसे बोलत नाहि ? मुरारी
(तर्ज: चलत चलत मथुरा नगरिमों .... )
क्यों मोसे बोलत नाहि ? मुरारी ।।टेक।।
कौन कसूर भये या जियसे ? मन ना देवत ग्वाही । मुरारी ! ।।१।।
हम गरिबनके बालक सुनकर, तुम्हरे मन नहि भाई । मुरारी ! ।।२।।
वह गोपाल कौन सुखिया थे ? जिनमें रँगे यदुराई । मुरारी ! ।।३।।
वह गोपी भी कौन तुम्हारी ? जिन सँंग नाच नचाई। मुरारी ! ।।४।।
थे वह कौन सुदाम तुम्हरे ? कंचन महल दिलाई । मुरारी ! ।।५।।
कहे तुकड्या हम ना चाहे कुछ, दे मुरलीको सुनाई । मुरारी !।।६।।