क्या अजब करामत पायी
(तर्ज : कायाका पिंजरा डोले.. )
क्या अजब करामत पायी । कायाकी रेल बनायी ।।टेक।।
जीवन का मारग खोला, आशा का लोहा डाला।
प्रीतीकी रूल चलायी । कायाकी०।।१।।
है पाँच रत्नकी गाडी, बनी औट हाथ की जाडी।
भरी सोहं श्वास-नलाई । कायाकी०।।२।।
नौ खिडकी दसवाँ द्वारा, जहाँ झगमग गिरे उजारा ।
खूबीकी सुन्दरताई । कायाकी०।।३।।
भरी अनहदकी धुनकारी, चली रेल जगत में जारी ।
संचित की आग भरायी । कायाकी०।।४।।
बिच आतमसाँइ बिराजे, अविचल का दौरा गाजे ।
सहजासन सेर समायी । कायाकी०।।५।।
दो दिन का जग में मेला, जिव खेल रहा है खेला ।
कर्मनकी टिकट कटायी । कायाकी०।।६।।
तुकड्या कहे जागो कोई, यह जान रहो मनमाँही ।
पुरि अमर मुकाम समायी । कायाकी।।७।।