ऊँचा संतनका अधिकार
(तर्ज : तुम्हारे पूजनको भगवान. . )
ऊँचा संतनका अधिकार । हम तो नहि पाते हैं पार ।।टेक।।
उसने सब इंद्रियको जीता, हम तो पढते खाली गीता ।
बूरा ना छूटा व्यवहार । हम तो नहि०।।१।।
वह तो जीते जगमें आये, लेकिन कर्म जरा नहि छूये ।
हम तो आकर बने गँवार । हम तो नहि०।।२।।
उसने माया सारी छोडी, अपनी तनकी आसा मोडी ।
हम तो खाते बने चमार । हम तो नहि०।।३।।
कहता तुकड्या हमने जाना, ऊँचा संतनका पहिराना ।
चाहते हैं चरणोंका तार । हम तो नहि०।।४।।