उठे छुटे सब कहते है
(तर्ज: छंद)
उठे छुटे सब कहते है, यों बिगडा है, त्यों बिगडा है !
क्या भाई ! कहने-कहनेसे, छुट जायेगा झगडा है ?।।टेक।।
अगरचे कुछ कहनेसे बनता, तो बतलाओ विकास क्या ?
बल्कि दिन-पर दिन गिरते हम,यह मिलता सब उदास क्या ।।
तुमभी कह दो, हमभी कहते, सुननेवाले रहे कहाँ ।
तो फिर कौन बढ़ेगा आगे? जिनका जीवन ठीक रहा।।
यह सब काव्यकुंज की बाते, पर घर जाता उजडाहै ।
क्या भाई ! कहने-कहनेसे, छुट जायेगा झगडा है?।।1॥
कहना पलभर ठीक रहे, पर करना घण्टों बढ जाये ।
तथी देशकी हालत सुधरे, सार यही हमने पाये ।।
कहनेवाले कम हों बल्कि करने का दल खूब बढे ।
कर दिखलाना उन्नत बाना, वेही रहेंगे बढे चढे ।।
दुनिया तो उनसे झुकती है, करके दिखाये मुखडा है ।
क्या भाई ! कहने-कहनेसे, छूट जायेगा झगडा है ? ।।2॥
कहने - पढनेवालों ने तो, दुनिया लायी धोखेमें ।
जरा बची है, कुछ दिखती तो, सोही जारही खोकेमें।।
तुमभी रानी, हमभी रानी, काम करेगा कौन यहाँ ?
मर जाओ फिर अकड-अकडकर, कोई न करता नाम यहाँ।।
यही सीखा है धंधा सबने, करके देश ये कंगडा है !
क्या भाई ! कहने-कहनेसे, छुट जायेगा झगडा है?।।3॥
अब बातों का बजार छोड़ो कुछ रचनात्मक काम करो।
काम करो तब नाम करो, नहिं तो पूरा आराम करो ! !
करनेवाले घुस जायेंगे, फिर तो तुम्हारा काम नहीं ।
बदनामी ही खुराक होगी और जमावे दाम कहीं ! !
कहता तुकड्या उद्योगी हो,उठाओ बाना पिछडा है !
क्या भाई ! कहने-कहनेसे, छुट जायेगा झगडा है? ।।4॥