आरती जय जगदीश्वरकी

                ।। आरती संग्रह ।।
(तर्ज: आरती अंजनितनयाची )
आरती जय जगदीश्वरकी । दयाघन सद्गुरु सुखकरकी ।।टेक।।
तुम्ही हो सागर ज्ञाननके । तुम्ही हो आगर ध्याननके ।
तुम्ही हो तारक जाननके । तुम्ही अवतार गजाननके ।
तुम्ही अधिकारी माननके । तुम्ही प्रतिपाल अजाननके ।
बतायो ज्ञान अज्ञाननको । मिटायो जन्ममरण उनको -
किये जगपार। दियो आधार । बताकर सार ।
मिलायो रूप हरिहरकी । दयाघन सद्गुरु सुख० ।।१।।
पंथ निर्बान तुम्हारा है । देखकर काल थरारा है।
सहजके सहज उजारा है । सहजमों सहज नियारा है ।
सहजका मंत्र पियारा है । जपे वह जगसे न्यारा है ।
लगे नहि करमाला इनको । लगे नहिं ताल सुरा इनको -
सहज धर ध्यान । हटे तनभान । मस्त हो जान ।
मिले निज-धार सुखागरकी । दयाघन सद्गुरु सुख०।।२।।
तुम्हारा ऊँचा है दरबार । लगे नहिं बेदनको भी पार ।
द्वारपर खड़े नगारेदार । चले दश-नादोंकी झनकार ।
बना है विवेक अर्जनिहार । झिलमिल ज्योत जले झकदार ।
अंगपर पंच धातुकी शाल । गलेमें सप्त रत्नकी माल-
सदा रहे मगन । लगा लियो लगन । रूप नित नगन ।
चाहता राखे सुरनरकी । दयाघन सद्गुरु सुख० ।।३।।
तुम्हारी महिमा अपरंपार ।  कलीमें तेरोही आधार ।
प्रगट होगये संत-अवतार । भक्तका करते बेडा पार ।
नाम जो भजे तुम्हारा यार । जनम नहिं आवे बारंबार ।
दीन हम द्वार तुम्हारे आय । चरणपर सीस धरे लपटाय-
कृपा कर नाथ ! दीन के तात ! तुम्ही हो पितु मात ।
अरज तुकड्याके भवहरकी । दयाघन सद्गुरु सुख०।।४।।
   ।।श्रीमत्सदगुरुनाथपदारविन्दार्पणमस्तु।।