क्या छुप गये है देवि - देवता ये हमारे ?

     (तर्ज : अब तेरे सिवा कौन मेरा ? ... )
क्या छुप गये है देवि - देवता ये हमारे?
मालुम नहीं कया सो गये, किस्मतहि हमारे ! ।।टेक।।
भारी बिपतमें गिर गया भारत ये हमारा ।
कुछ भी कसूर है नही, न कोई सहारा ।
आँखे उठाके   देखते, नहिं   नाथ  हमारे ।।१।।
बस, क्या रहा तो सामना करते हो किसीका ?
तन भी रहा, न धन रहा, जो हे सो  उसीका ।
सब फाक हो गये है, धर्म - कर्म  के  तारे ।।२।।
क्या था अरु क्या हो गया,सबही तो जानते ।
किसने किया इतना बडा, सबही पछानते ।
डूबी है नाव भौंरमें, कब   आवे   किनारे ।।३।।
नहिं हाथमे भि बल, न बुध्दिमें दिमाग है ।
ना कर्म भी ऊँचे, न पापका भि  भान  है ।
तुकड्या कहे दे हाथ, उठा अपने  सहारे ।।४॥