किसे गराज है तुम्हारी

            (तर्ज: वो राम मुझमें में राममें हैं...)
किसे गरज है तुम्हारी, तुम कुछ समझ रहे हो! उमज रहे हो ?
जो कुछ भी करते हो तुम सभी मिल, सुधर रहे हो या मर रहे हो ? ।।टेक ।।
दिया है इईश्वरने खून हमको, वह है हमारा या मातृभूका ?
लगाते किसके लिये हो बीरों, स्वघरमें परदास्य कर रहे हो ।।१।।
बताओ कि तुमनेहि कया किया है,जिससे कि तुमको मिला है भारत ?
अभी कहाँ हो, कहाँ चलोंगे? इधर रहे या उधर रहे हो? ।।२।।
मिलेगा दाना वही है जाना - यह जानवरकी है राह सचमें ।
न तुम हो, वह हम समझते आये,विचार लो अब क्यों भुल् रहे हो ।।३।।
उठाओ सरको ऊँचा बनाओ, निज राष्ट्रमें कुछ करो मरो फिर ।
वह दास तुकड्या पुकारता है, यह सुन रहे या निंद ले रहे हो ! ।।४।।