कबके हैं ढूंढते, तेरा पता
(तर्ज: हर जगह की रोशनी में...)
कबके हैं ढूंढते, तेरा पता पाता नही ।
तू किसे है ढूंढता ? मेरी समझ आता नहीं ।।टेक।।
क्या तुझे है गर्ज, किसके फर्ज में तू है फँसा ?
हर जगह तुझसे कहें, पर रुख मिलवाता नहीं ।।1।।
हम तेरे दीवाने बनकर, है खडे दीदार को ।
कह नहीं सकते तुझे, आहटही जाती या नहीं ।।2।।
किस नतीजेपर हमारी, किश्तिको ले जायगा ?
खैर ! जो होगा वही हो,पर कहीं मिल तो सही ?।।3।।
आखरी आवाजपर, हम मर मिटेंगे याद में ।
कहत तुकड्या याद रख,फिर भूल जाना ना कहीं।।4।।