आ जाना रे बन्सीवाले !

(तर्ज : बनसी बजानेवाले तेरी बंसी बजा दे... )
आ जाना रे बन्सीवाले ! तेरी  बंसी  सुना    दे ।।टेक।।
बहुत दिन बीते गये, तुम छोड गये भारत को ।
वह   मिठी   मिठी    तान, फिरसे    सुना   दे  ।।1।।
तडप रही है गोपी सारी, गौओपर आफत भारी।
रोटी न  मिलती   गोपालोंको, फिरसे बना दे ।।2।।
डोल रही है झाडकी पत्तियाँ,और लत्तियाँ कुंजनकी।
गुज रहा था    वह   गोकुल, फिरसे  गुजा दे ।।3।।
उन्मपत  असुरनकी, चोट चढी बाँकी साकी ।
लेकरके   चक्र    सुदर्शन,  असुर    भगा   दे ।।4।।
तुकड्यादास भला मतवाला,अपनीही धुनमें मस्त सदा।
तेरी   बंसीकी   तानमें, सुनवा    के   रंगा   दे ।।5।।