आँखी प्रेमसे भरा

             (तर्ज : मोल न कुछ लिया... ) 
 आँखी प्रेमसे भरा, दिखेगा विदुल तुझको खरा ।
 नैन सुधरले जरा, दुद्दी का बिन्दु धुलाले पुरा ।।टेक।।
अहंकार का डगला झाँका, करके छूपा बिहारी बाँका।
            फेंक बदनसे गिरा ।। दिखेगा विठ्ठल0 ।।1।।
हरी-नामकी ज्योत जगाले,काम-क्रोधको मार भगाले।
            तब  चमकेगा हिरा।। दिखेगा विठ्ठल0।।2।।
गद्गद् हो सेवा  करनेको,डरना नहीं जरा मरनेको ।
           हटा पंथ  का  चिरा ।। दिखेगा विठ्ठल0।।3।। मैं हूँ भक्त बडा संन्यासी,यह माने तब लग् गया फाँसी 
            अभीमान हो  चुरा ।। दिखेगा विठ्ठल0 ।।4।।
तुकड्यादास कहे सब दिन है,बिना हरी नहीं जावे क्षण है।
            काल कँपे थरथरा ।। दिखेगा विठ्ठल0 ।।5।।