आओ संतोकी गलियों में

            (तर्ज: सच्चे सेवक बनेंगे हम जब... ) 
आओं संतोकी गलियों   में, खेलो   अमृतपान   करो । 
माया-मोहमें क्यों डूबे हो? क्या पाओगे? ग्यान करो ।।टेक।।
इस माया में रमकर किसने ऊँची बातें पायी है ।
मेरा मेरा कहकर सारी बरबादी   अजमायी  है ।
कालबलीका मचा धडाका, धनदौलत धो डाले है ।
बारबार समझाते साधू, कौन तुम्हे बचवाले  है ।
मत खोओ यह अमोल संधी, ईश्वरका गुणगान करे ।
                        माया -मोहमे 0।।१।।
बालकपन खेलोमें खोया, यौवन स्रीके संग गया ।
बूढ़ा होकर चिंता पायी, नहि लडकोंने सौख्य दिया ।
हाथपैर जब ढीले होंगे, क्या बन जावे वक्त गया !
जो जो मर गये सबने बोला-नाहक हमने मेल किया ।।
लेकिन किसको समझ न आयी,क्यों छाती संसार धरो
                       माया -मोहमे 0।।२।।
अमृत छोडे विषकों पकडे, यह दुनियाका रंग  रहा ।
शांति कहाँ संसारको पाये? जन्ममरणका जग रहा ।
यह शैतानीही दुनिया है, इससे सुफलित काम नही ।
कृपा रही गुरुदेवकी जिसपर, वह घूसे इस धाम नही ।
तुकड्यादास कहे, कहता हूँ सुनलो तो आराम करो ।
                       माया -मोहमे 0।।३।।