ऐ गांधी ! तूही था परम हितैषी

             (तर्ज: सच्चा धर्म नहि जाना. . )
                  तूही था परम हितैषी,
       ऐ गांधी ! तूही था परम हितैषी ।।टेक।।
हतबल थी भारत की जनता, कौन छुडावे फॉसी ?
सब डरते  थे  मरने - मारने, हुई  दशा  थी  ऐसी ।।१।।
सत्य -अहिंसा मन्त्र पाकर,जगा दिया जनता को ।
साधन-शुध्दि भरी जीवनमें, लडे जुल्म से लाखो ।।२।।
सत्‌का हो सत्याग्रह सबमें, जो  मानव  कहलाये ।
अन्यायी   सत्ताके   आगे, सर  ना  झुकने    पाये ।।३।।
संयम हो, सादगी, सफाई, समता  सब  धर्माकी ।
स्वावलम्बी हो जीवन सबका,यह थी नीति अनोखी ।। ४।।
असहकार से जोश बढाया,आत्मिक निर्भयता का ।
पार फिरंगे ! गोली, हमरा बाल न   होगा  बाँका  ।।५।।
हिला दिया साप्राज्य ब्रिटिश का,छोड छोड़कर भागे।
तुकड्यादास कहे  फहराये दिल्लीपर  भी  तिरंगे ।।६।।