इन्सान तूफान है मत बडा
(तर्ज : कुणी काही म्हणो, मज भान नसे-..)
इन्सान तूफान है मत्त बडा ।
सत् संगत से ही सुधर जाये ।।
नहीं तो नहीं अंकुश है उसको ,
उसे देव-धरम न सुधर पाये ! ।।टेक।।
भस्मासुर भी तो मनुष्य ही था,
बरदान से इतना मत्त हुआ ।।
विष्णू को पडा था संकट ही ,
फिर मोहिनी रूपसे नाश किये ।।1।।
रावन-दुर्योधन कौन थें ये,
सीता-द्रौपदी की हालत की ।।
उनको सत्ताकी आयी नसा,
वह नहीं सुधरे बिन युद्ध किये ।।2।।
हनुमान गोपाल न होते कहीं,
मुश्किल ही पड़ी थी देवन को ।।
अद्भुत लीला प्रभुने भर दी,
उन नामसे सेतु उठाय लिये ।।3।।
उस वख्त तो कुछ -कुछ थें ऐसे ,
पर आज तो है घर-घरमें पडे ।।
उनको नहीं नेम न धर्म -भजन,
घुमते हैं, स्रियों को साथ लिये ।।4।।
उनका है प्रीय वतन अपना,
जो रोज सिनेमा जाना है।।
पाना वहाँ मदिरा-मादकता,
फिर कैसे सात्विक हो जायें ? ।।5।।
कुछ समझ -समझकर संगतसे ,
सत्-ग्यान सुनाते जाना है।।
तुकड्या कहे, शायद ठीक बने,
उससे भरने फिर डूब गये ।।6।।