उसीका सफल है जीना, जन्म लेना

(तर्ज : इस तन-धन की कौन बढ़ाई... )

उसीका सफल है जीना, जन्म लेना ।
पढी ब्रह्म-विद्या और खुदको पछाना ।।टेक।।
कहाँ जीव है, शीव है, ईश, माया ।
सुना जिसने बेदान्त, अनुभव भी पाया ।।1।।
किसे ज़ानकी सप्तभूमि कही है। 
बिना इसके कोई  भी    इच्छा   नहीं  है ।।2।।
हमेशा करे संतसे ग्यान लेना ।
उसीपर अमल करके,सुख-शाति पाना ।।3।।
रहे संयमी और जबाँ प्रेम बाहे ।
कहे दास तुकड्या,वही  तर   गया    है ।।4।।