इन्ही कारणोंसे जीना चाहता हूँ
(तर्ज : इस तन-धन की कौन बडाई... )
इन्ही कारणोंसे जीना चाहता हूँ ।
सफल करलूं जीवन यही मांगता हूँ ।।टेक।।
गरिबोंकी सेवा, जनार्दन की भक्ति ।
संयमसे जीना, इसीमें हो मुक्ति ।।1।।
सदा संतसंगत, विचारोंमें नीती।
सच्चाई का व्यवहार और सबसे हो प्रीति ।।2।।
किसीसे नहीं, क्रोध और दंभ होना ।
सदा नम्रता, भजनमें रंग जाना ।।3।।
किसी पंथ का द्वेष ना हो कहाँ भी ।
कहे दास तुकड्या, जहाँ हूँ रहा भी ।।4।।